बालहठ के आगे हारे शिव, दूधेश्वर कहलाए

टपकेश्वर में प्रकट होकर अश्वस्थामा को वरदान में दिया दूध - द्रोण गुफा में पहले बहती थी दूध की धारा, अब टपकता है पानी - गुरू द्रोणाचार्य की तस्पथली रही है द्रोण गुफा, पत्नी संग आए थे यहां - पुत्र अस्वस्थामा ने दूध के लिए की थी भगवान शिव की तपस्या

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भुवन उपाध्याय

देहरादून। भगवान भोलेनाथ तो सचमुच भोले हैं और उनके भक्त तो और भी निराले। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में एक ऐसा स्थल है जहां भगवान शिव ने तपस्यारत एक बालक की हठ के आगे हार मानकर गुफा के भीतर दूध की धारा बहा दी। कालांतर में कलियुग के प्रारंभ होने के उपरांत इस गुफा में दूध की जगह पानी टपकने लगा। आइए आपको ले चलते हैं उस स्थल की तरफ जहां भगवान भोलेनाथ ने माता पार्वती के साथ प्रकट होकर एक बालक की तपस्या से प्रसन्न हो गुफा के भीतर दूध की धारा बहा दी थी।

देहरादून जो कि पहले द्रोणनगरी के नाम से जाना जाता था। द्रोणनगर यानि देहरादून शहर से करीब छह किलोमीटर की दूरी पर बसे श्री टपकेश्वर महादेव मंदिर जो कि पहले द्रोण गुफा के नाम से जाना जाता था। यहां पर गुरू द्रोणाचार्य अपनी धर्मपत्नी देवी कृति के साथ पधारे थे। मान्यता है कि उनके पुत्र हुआ था। पुत्र का नाम अस्वस्थामा था। बताया जाता है कि माता कृति को दूध नहीं होता था। तब द्रोण गुफा के आसपास अन्य ऋशि मुनियों के भी आश्रम थे। धीरे-धीरे अस्वस्थामा बडे होने लगे। उनकी अन्य ऋषि कुमारों से मित्रता होने लगी। एक बार अस्वस्थामा किसी ऋषि कुमार के घर गए तो उनकी माता ने उन्हें गाय का दूध पिलाया। घर वापस आने पर मां कृति से दूध पीने की हठ करने लगे। बालहठ के आगे मजबूर होकर गुरू द्रोण अपने मित्र द्रुपद के पास हस्तिनापुर (मेरठ) गाय मांगने गए। राजा द्रुपद के पास हजारों गायें थी किंतु विधि के विधान के आगे मजबूर होकर उन्होंने गाय देने से असमति व्यक्त कर दी। यहां द्रोण गुफा में माता कृति बालक अस्वस्थामा को यह ढांढस बंधा रही थीं कि उनके पिता जल्द ही गाय लेकर आ रहे हैं और उन्हें दूध पीने को मिलेगा। गुरू द्रोण खाली हाथ लौट आए। पिता के साथ गाय नहीं देखकर बालक अस्वस्थामा को काफी निराशा हुई। तब गुरू द्रोण ने बालक अस्वस्थामा से कहा कि भगवान शिव ही उन्हें दूध दिला सकते हैं। फिर क्या था बालक अस्वस्थामा एक पैर में खडे होकर पंचाक्षर मंत्र ‘ऊं नमः शिवाय’ का अखंड जाप करने लगे। भगवान शिव कैलाश में महासमाधि में लीन थे। माता पार्वती ने जब इस नन्हें बालक को घोर तप करते देखा तो उन्होंने भगवान शिव को महासमाधि से जगाया और दोनों टपकेश्वर गुफा में प्रकट हुए। देवताओं ने पुष्प वर्षा की। भोलेनाथ ने जब बालक अस्वस्थामा से वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने दूध मांगा। बताया जाता है कि यहां पर शिवलिंग के ऊपर दूध की धारा बहने लगी और यह स्थल दूधेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध हुआ।

बताया जाता है कि कलियुग का प्रारंभ होते ही दूध की जगह पानी टपकने लगा और यह स्थल श्री टपकेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हुआ। दूध की जगह पानी टपकने के विषय में तमाम मत हैं। इस संबंध में यह किवदंती भी है कि किसी ने यहां टपक रहे दूध से खीर बनाकर खा ली। जिसके बाद से यहां दूध की जगह पानी टपकने लगा। यहां बता दें प्राचीन काल में यह स्थल ऋषि मुनियों की तपस्थली भी रहा है। इसका नाम तपेश्वर महादेव भी है।

महाशिवरात्रि के पावन पर्व में श्री टपकेश्वर महादेव को जलाभिषेक करने के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रावण मास के सोमवारों में पूरा मंदिर परिसर बम-बम भोले, बोल बम, हर-हर महादेव के उद्घोष से गुंजायमान रहता है। साथ ही वर्षभर श्रद्धालुओं का यहां आवागमन बना रहता है। श्रावण मास में ही भव्य शिव बारात पूरे शहर में निकाली जाती है जो कि धीरे-धीरे देहरादून शहर का मुख्य आयोजन बन गया है। मंदिर परिसर के आसपास माता बैष्णो देवी गुफा मंदिर, संतोषी माता मंदिर, भद्रकाली मंदिर, महर्षि बाल्मीकि मंदिर, हरसिद्ध दुर्गा मंदिर, शाकुंबरी माता मंदिर, श्री राधा-कृष्ण मंदिर आदि दर्शनीय स्थल हैं। मंदिर के पास बहने वाली पवित्र तमसा नदी भी आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मंदिर के चारों ओर प्राकृतिक वातावरण भक्तों को अंतर्मुखी बनाता है। महंत 108 कृष्णगिरि महाराज बताते हैं कि मंदिर के महंत पूज्य 108 मायागिरि जी महाराज के दिशा निर्देश में मंदिर के सभी सेवा कार्य सुचारू रूप से चलाए जाते हैं।

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