जानें … वोट करके क्या बोलीं तेजाब हिंसा की शिकार लक्ष्मी

आज मैने वोट किया है इस आशा के साथ कि चुनी हुई सरकार हमारे अधिकारों का रक्षण करेगी - लक्ष्मी अग्रवाल

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नई दिल्ली (ब्यूरो)। देश में चुनाव का दौर चल रहा है तो वहीं राजधानी दिल्ली में लोकसभा चुनाव के प्रत्याशियों की हार-जीत का फैसला ईवीएम में कैद हो चुका है। देश की हस्तियाँ भी इस बार राष्ट्रीय त्योहार चुनाव में बढ़-चढ़ कर भागीदारी कर रहे हैं। वहीं नई दिल्ली के गोल्फ लिंक्स के एनडीएमसी कम्युनिटी सेंटर बूथ पर अपना वोट डालने पहुँची लक्ष्मी अग्रवाल। लक्ष्मी की पहचान दुनिया में एसिड अटैक फाईटर के रूप में है। जब लक्ष्मी 15 साल की थीं तब उनके ऊपर एक युवक जोकि 32 साल का था उसने दिल्ली की खान मार्केट के पास तेजाब डाल फेंक दिया था। लेकिन लक्ष्मी ने उसके इरादे को विफल करते हुए अपनी हिम्मत नहीं तोड़ी और अपनी लड़ाई इस तेजाबी हिंसा के विरूद्ध शूरू कर दी। लक्ष्मी ने 2006 में सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दायर की और 2013 में जाकर सुप्रीम कोर्ट ने तेजाबी हिंसा के प्रति कानून बनाया और कुछ आवश्यक दिशा निर्देश दिये, लेकिन दुर्भाग्य यह रहा कि आज तक कोई भी सरकार उसका अनुपालन नहीं कर पाई। लक्ष्मी ने वोट तो किया है नई सरकार चुनने के लिए लेकिन वह इस बार चाहती हैं कि देश में जो सरकार चुन कर आए वह सबके अधिकारों का संरक्षण करे। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर अपनी वोटिंग फिंगर के साथ एक पोस्ट साझा की है जिसमें वह लिखती हैं कि –

तेजाबी हिंसा व तेजाब की बिक्री को बन्द करने के लिए साल 2006 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की गयी थी, जिसका निर्णय मात्र आने में 7 साल का समय लग गया। साल 2013 में जाकर सुप्रीम कोर्ट का याचिका पर निर्णय आया। निर्णय आने में यह जो 13 साल का समय लगा इस दौरान भी कई तेजाबी हिंसा के मामले हुए हैं। साल 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने याचिका के पक्ष में फैसला सुनाया, एसिड अटैक के लिए मार्च 2013 में अलग धाराएं 326ए और 326बी बनाई गयीं। सुप्रीम कोर्ट ने गाईड लाईन जारी करी जिसमें एसिड की बिक्री को प्रतिबंधित रखा गया। नए नियमों के तहत, 18 साल से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को एसिड नहीं बेचा जा सकता है। एसिड खरीदने से पहले एक फोटो पहचान पत्र प्रस्तुत करना भी आवश्यक है लेकिन सभी नियमों के बावजूद जमीन पर बहुत कुछ नहीं बदला है, “एसिड खुलेआम दुकानों में उपलब्ध है और आसानी से आज गंधक का एसिड भी खरीद लिया जा रहा है।
सोचने का विषय है जब देश में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सर्वोपरि है तो भी देश में तेजाबी हिंसा व बिक्री के प्रति सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का देश की सरकारों व प्रशासन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। किसी ने भी सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का अनुपालन करना जरूरी नहीं समझा साथ ही तेजाबी हिंसा के इस जघन्य अपराध को रोकने का मन नहीं बनाया।
जिनकी जिम्मेदारी है तेजाबी हिंसा के प्रति सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करना व दूसरों से कराना, उनके साथ जब तक किसी प्रकार की तेजाबी हिंसा घटित नहीं होती तब तक वह किसी अन्य का दर्द महसूस नहीं करेंगे और न ही उनको इस बात का कोई फर्क पड़ेगा। फर्क तो उसको पड़ता है जिसके साथ तेजाबी हिंसा हुई होती है या जिसके परिवार में तेजाबी हिंसा का कोई शिकार हो जाता है। फर्क आपको नहीं पड़ रहा क्योंकि आप इंतजार कर रहे हैं अपने साथ इस तेजाबी हिंसा के होने का। हमने लगातार कई सारी जगहों पर जाकर खुद छापे मारे हैं, लगातार हमारा काम एसिड अटैक के विरूद्ध चल रहा है। जो काम सरकारों व प्रशासन को करना चाहिए वह काम आम जनता को करना पड़ रहा है जो स्वयं में शर्मनाक है हमारी न्यायिक व्यवस्था के तले रह रही सरकारों व प्रशासन के लिए‌। सबसे बड़ी प्रॉब्लम यह है कि जो कानून बना है उसका सही ढंग से उपयोग नहीं हो पा रहा है। उस कानून का कोई सम्मान नहीं है। लोगों ने तेजाब को एक आसान हथियार बना रखा है क्योंकि यह हमारे देश की न्यायिक व्यवस्था की धज्जियां उड़ाने के समान है। तेजाब हथियार बना है क्योंकि यह आसानी से हमारे आस-पास में उपलब्ध है, सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी तेजाब को पकड़ने व पहचानने की कोई मशीन उपलब्ध नहीं है। हमारे देश का कानून बहुत स्लो है इसको तेज होने की जरूरत है, देश में आज जो फास्ट ट्रैक कोर्ट हैं वह भी आम कोर्ट की तरह तारीख ही देते हैं समय से न्याय नहीं दे पाते। ऐसे फास्ट ट्रैक कोर्ट होने का क्या मतलब है ???
हम बात करते हैं प्रीठी राठी के ऊपर हुई तेजाबी हिंसा की। उसका क्रिमिनल बहुत आसानी से बेखौफ होकर ट्रेन में तेजाब लेकर निकल चला जब उसनें प्रीती को तेजाबी हिंसा का शिकार बनाया था। जितनी आसानी से वह शख्स तेजाब लेकर ट्रेन में चड़ प्रीति के पीछे गया और उसके ट्रेन से उतरते ही उसको भी तेजाबी हिंसा का शिकार बना दिया था अफसोस आज प्रीती हमारे बीच अब इस दुनिया में नहीं हैं जिसकी जिम्मेदारी प्रसाशन की ही है। दु:खद यह है कि प्रीती के गुनहगार को फांसी की सजा सुनाने के बाद अभी तक उसको फांसी नहीं दी गयी है। इसी प्रकार की घटना अभी बीते सोमवार को मध्यप्रदेश में हुई जहाँ कुछ लोगो द्वारा चलती ट्रेन में तेजाब लेकर सफर किया गया और सवारियों में बैठी माँ-बेटी को भी उस तेजाबी हिंसा का शिकार हुईं है। इससे पहले भी कुछ छात्र-छात्राओं व अन्य पर इसी साल 2019 में कई तेजाबी हमले हुए हैं। लेकिन जिम्मेदार लोग सो रहे हैं किसी की कोई जवाबदेही नहीं है दुकानदारो से जाकर जब हम पूछते हैं कि तेजाब बेचने का कोई लाइसेंस है तो उनके पास लाइसेंस भी नहीं होता, जबकि तेजाब बेचने के लिए उसका होना सुप्रीम कोर्ट के आदेशों में से एक है। अगर हम बात करें रेप केस की तो न्याय वहाँ भी नहीं है अब तक का सबसे बड़ा रेप केस और हमारी कानून व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल है वह है निर्भया का मामला। जिस बर्बरता के साथ चलती बस में उसके शरीर के अंगों को‌ नष्ट कर मौत के घाट उतारा गया था वह शायद ही किसी के जहन से उतर सके। एक नाबालिक आरोपी जिसको हमारे कानून ने बचा लिया, कानून को उसकी कम उम्र दिखी किन्तु उसके कुकृत्य और असुरी मानसिकता जिसने एक लड़की का जीवन समाप्त कर दिया वह नहीं दिखी। निर्भया के किसी भी आरोपी को‌ फांसी हुई नहीं केवल सजा सुनाई गयी थी जो मुख्य आरोपी नाबालिक साबित होने के कारण बच गया। उस पर कोई भी धारा दर्ज नहीं है और आज किसी बड़े होटल में वह हमारे कानून का तोहफा लिए सेफ की नौकरी कर रहा है। यही विडम्बना है हमारे देश के कानून की, उसका अनुपालन करने व कराने वाली सरकारों और प्रशासन के जिम्मेदार आला अधिकारियों की जो वह इसके प्रति तनिक भी जवाबदेह नहीं हैं। सिर्फ वही नहीं आपका भी कर्तव्य बनता है कि आप भी अपनी नैतिक जिम्मेदारी से भागें नहीं बल्कि विषम परिस्थितियों में आगे बड़ें और जन-जागरूकता का काम करें जो जनहित की बाते हैं उनका व्यापक प्रचार-प्रसार करें। स्वयं भी जागना होगा और इस देसा के कानून को भी ठीक करना होगा। ऐसा कानून चाहिए इस देश में जो उसकी शरण में जाने वाले को समय रहते न्याय दे सके न कि उस कानून की आवश्यकता है जो देश और देशवासियों दोनों को कमजोर बनाए।
इस तरह एक समय ऐसा आ जाएगा कि कानून और सरकारों पर किसी को कोई विश्वास नहीं रहेगा क्योंकि निरन्तर हमारी न्यायिक व्यवस्था चरमरा रही है और यदि यही सब रहा तो एक दिन ऐसा आ जाएगा कि इंसाफ के लिए खुद लोग सड़कों पर उतरने लगेंगे और खुद ही न्याय पाने का रास्ता तलाशेंगे, जिससे कोई और निर्भया न बने कोई और प्रीती न बने।

“स्टाॅप सेल एसिड” अभियान हर स्तर पर तेजाबी हिंसा के विरूद्ध खड़ा है। आप भी जुड़ सकते हैं #StopSaleAcid अभिया‌न से….। #needshare

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लक्ष्मी की बात जायज है और आने वाली सरकारों को इस ओर ध्यान भी देना चाहिए। हमारे देश में बहुत से मामले विभिन्न कोर्ट में सालों से लम्बित पड़े हैं जिसके कारण न्याय के लिए आस लगाए परिवारों को परेशान होना पड़ता है।