वर्तमान परिदृश्य में संघ की भूमिका बताई सरसंघचालक डा मोहन भागवत ने 

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क्रांति मिशन ब्यूरो

देहरादून। कोरोना महामारी काल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की भूमिका सरसंघचालक डा मोहन भागवत ने बताई है। डा भागनत ने कहा है वर्तमान परिदृश्य में स्वयंसेवकों को लगता होगा कि शाखा बंद है, नित्य कार्यक्रम बंद हैं तो संघ का काम बंद। उन्होंने कहा ऐसा नहीं है। संघ का काम चल रहा है, बस उसका स्वरुप बदल गया है। यह सेवा कार्य संघ के कार्य जैसा है।तथागत के लेख को चीनी भाषा में छपवाने के लिए जो धन एकत्र किया था, उसे सेवा भाव में खर्च किया। ऐसा दो बार हुआ। जब तीसरी बार में कामयाबी मिली तो उसने कहा कि ये तथागत के जीवन की यह तीसरी आवर्ती है। क्योंकि पहले 2 सेवा कार्य भी इसी का हिस्सा थे। सामान्य व्यक्ति को दिशा देने वाले लोगों को तैयार करना। नहीं तो अविवेक कभी भी सब गड़बड़ कर सकता है। शारीरिक दूरी बना कर ही भविष्य में हमें कार्य करना है।

सरसंघचालक डा भागवत ने कहा है यह सेवा प्रसिद्धि के लिए नहीं है। अपने समाज और देश के लिए आत्मीयता के लिए यह सेवा है। सेवा कार्य सातम्य, बिना थके सामूहिकता के साथ, योजनाबद्ध, अनुशासन पूर्वक अपनत्व की भावना से करना होगा। निराश व्यक्ति का प्रसंग- डिफरेन्स बिटवीन सक्सेस एंड फेल्यर इन 3 फ़ीट (मेग्नीज की खदान, से कम्पनी का मालिक बनने की कहानी)

सरसंघचालक द्वारा दिया बौद्धिक

• शिक्षा:- प्रयास अंतिम समय तक करना।
• सेवाकार्य बिना किसी भेदभाव के सबके लिए करना है। जिन्हें सहायता की आवश्यकता है वे सभी अपने है, उनमें कोई अंतर नहीं करना। हमने विश्व के मानव की सेवा, नुकसान उठा कर करी। दवा का उदाहरण
• अपने लोगों की सेवा उपकार नहीं है वरन हमारा कर्तव्य है। उनकी ही मदद की जाए , जिन्हें इसकी जरूरत है।
• किसी ने कुछ ग़लत कर भी दिया तो सभी को दोषी न माने । कुछ लोग इसका दुरूपयोग करना चाहते है। हमें ऐसे किसी प्रतिक्रिया में नहीं आना है।
• संघ ने देश के ऊपर आये इस संकट में स्वेच्छा से जून तक सभी कार्यक्रम स्थगित कर दिए।
• यह संकट हमको कुछ सीखा भी रहा है, राष्ट्र पुनर्निर्माण का कार्य आगे बढ़ता रहना पड़ेगा,ग्रामीणों का रोजगार,उद्योगों से उनका जुड़ाव न टूटे, स्वावलंबन के प्रति पर्यावरण को बिगड़े बिना आगे बढ़ना होगा,नए विकास का मॉडल समाज को साथ लेकर बनाएंगे।
• लॉक डाउन खुलने के बाद समाज को सिखाना पड़ेगा कि अब कैसे रहना है:- ई क्लासेस, बाजार ने डिस्टेंस बनाये रखना, कंपनी में सभी नियमो का पालन करना होगा।
• सेवा कार्य स्वयं करते हुए दूसरों को श्रेय देना है।
•  षड् दोषा पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।
• निद्रा तन्द्रा भयं क्रोध आलस्यं दीर्घसूत्रता ।। कल्याण अथवा उन्नति के लिये निद्रा, तन्द्रा, भय, क्रोध आलस्य और प्रमाद ये छ: दोष त्याग देने चाहिए ।
• भारत का 130 करोड़ जन भारतमाता के पुत्र है। सभी की अपनत्व के साथ सेवा करना।
• महाराष्ट्र में सन्यासीयो की हत्या जघन्य है। ऐसे विभाजनकारी तत्व से सावधान रहते हुए। इन्हे रोकते हुए अपना कार्य करना।
• जन समान्य के नित्य नियमित आचरण मे योग, काड़ा (आयुष मंत्रालय द्वारा निर्देशित) का उपयोग हो।
• सब अस्त व्यस्त हुआ है ठीक होने मे समय लगेगा।यह संकट अवसर लेकर भी आया है, हमे स्वालंबन की ओर जाना होगा।
• प्रवासी कामगार बड़ी संख्या मे अपने गाँव की ओर लौटे है। उनके हितो की चिंता शासन, प्रशासन व समाज ने भी करनी पड़ेगी।
• राष्ट्र पुनर्निर्माण का जो कार्य चल रहा है। उसमे गति प्रदान करना है।
• संस्कारमूलक शिक्षा की ओर प्रयास करना पड़ेगा।
• स्वदेशी का आचरण करना है। स्वदेशी का आवरण सर्वोत्तम हो। विदेशी आलम्बन कम से कम हो।
• पर्यावरण बहुत मात्रा मे शुद्ध हुआ है। यह ऐसा बना रहे इस दिशा मे प्रयास करना होगा।
• अनुशासन समाज मे बना रहे। जहा अनुशासन हीनता हुई है वहां महामारी का प्रकोप बड़ा है।
• संकट को अवसर बनाकर भारत के उत्थान का प्रयत्न करना।