स्पेशल … ग्रीष्मकालीन राजधानी बताएगी पहाड की पीडा, सूझेंगे उपाय …

संपादकीय ... क्रांति मिशन समाचार पत्र

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उत्तराखंड राज्य बने 20 साल हो गये। निर्माण से लेकर अब तक गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाने की मांग सभी खूब करते रहे लेकिन उसे पूरा करने का साहस कोई सरकार नहीं दिखा सकी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण की सियासत में नया ‘खेल’ कर दिया है। गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करके सीएम त्रिवेंद्र ने ‘राजधानी-राजधानी’ के खेल मंे लगे विरोधियों को अब नई भूमिका बनाने के लिये मजबूर कर दिया है। पहाड चढने से ना-नुकूर करने वाले नौकरशाहों को ग्रीष्मकाल में ही पहाड की पीडा से रूबरू कराने को ‘गैरसैंण’ काफी है। मार्च के महीने में गैरसैंण में जहां सदन में बजट पर सरकार अपना रोडमैप रख रही थी वहीं बाहर जबर्दस्त बर्फबारी ने पहाड की खूबसूरती को बयां किया ही साथ ही पहाड के बाशिंदों का दर्द भी बता दिया। पहला पक्ष … अब भले ही जो लोग 2-4 दिन पहाड में मौसम का आनंद लेने के लिये इस बर्फबारी को कुदरत का तोहफा बताते फिरें लेकिन हकीकत यह है कि किस तरह बर्फबारी स्थानीय जनों को तकलीफ में डालती है। बर्फबारी के चलते रास्ते बंद होने से स्कूली बच्चों की पढाई प्रभावित होती है। पानी से लेकर राशन तक की दिक्कत लोग झेलते हैं। आम जनजीवन ठहर सा जाता है। लोग अपने घरों में कैद होकर रह जाते हैं। दूसरा पक्ष … यदि सुविधायें हों। मसलन बर्फबारी होने पर तत्काल बर्फ हटाने के लिये संसाधन होने से यातायात की जो समस्या पहाड के आम जन झेलते हैं वह दूर हो सकेगी। स्कूली बच्चों की पढाई प्रभावित नहीं होगी। लोगों को घरों में कैद नहीं रहना पडेगा। पहाड की पीडा को गैरसैंण से अधिक भला कौन बताएगा। सरकार के इस फैसले से इसलिए लोग खुश हैं। उम्मीद है गैरसैंण समूचे पहाडवासियों के दुख दूर करेगा।