क्रांति मिशन ब्यूरो
देहरादून। क्या आपको मालूम है कि देवभूमि उत्तराखंड में कितने सरस्वती शिशु मंदिर है ? बिना किसी सरकारी सहायता के विद्याभारती द्वारा संचालित ये शिशु मंदिर कैसे सुदूर सीमांत क्षेत्रों में भी कैसे राष्ट्रवाद और सनातन की शिक्षा दे रहे है ?
देश का पहला माणा गांव जहां आपको सरस्वती शिशु मंदिर में बच्चे पढ़ते मिलेंगे। सुदूर सीमांत नगर धारचूला के सरस्वती शिशु मंदिर में भारत ही नहीं नेपाल के बच्चे भी पढ़ते हुए मिलेंगे। उत्तरकारी के धराली में, चमोली के थराली में पिछले दिनों प्राकृतिक आपदा आई वहां भी सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालयों की मौजूदगी दिखाई दी। पीपलकोटी, लोहाघाट, ग्वालदम , मुनस्यारी हर जगह सरस्वती शिशु मंदिर बिना किसी सरकारी सहायता के बच्चों को शिक्षा देते हुए मिल जायेगे।
पहाड़ों में ऐसे शहर कस्बे गांव जहां सरकारी स्कूल बंद होते जा रहे है वहां सरस्वती शिशु मंदिर अपने सीमित साधनों के बावजूद क्षेत्र के बच्चों को शिक्षा संस्कार देने का बीड़ा उठाए हुए है।
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार परिवार के रूप में विद्याभारती, देश भर में सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालयों में माध्यम से शिक्षा देने का कार्य विद्यार्थियों को करती आई है।
देवभूमि उत्तराखंड में कितने शिशु मंदिर ?
एक जानकारी के अनुसार देवभूमि उत्तराखंड में वर्तमान में 562 सरस्वती शिशु मंदिर ,शिक्षा देने का कार्य कर रहे है जहां भारतीय संस्कृति की आधुनिक शिक्षा के साथ साथ गीता,वेद, पुराण भी पढ़ाए जा रहे है।
ज्यादातर विद्यालय स्मार्ट क्लास में परिवर्तित हो चुके है।
हैरान करती है विद्यार्थी संख्या
देवभूमि उत्तराखंड में शिक्षा दे रहे शिशु मंदिरों की विद्यार्थी संख्या की यदि बात करे तो वर्तमान में 01 लाख 14 हजार 7 सौ 19 बताई गई है। ये शंख हैरान करने वाली है। पहाड़ों में विद्यार्थी संख्या,विषय संख्या,शिक्षक संख्या के अभाव में सरकारी स्कूल बंद हुए लेकिन सरस्वती शिशु मंदिर अपने सीमित साधनों के बावजूद कायम रहे और नए भी खुलते रहे।
आवासीय विद्यालय भी संचालित
उत्तराखंड में नैनीताल के पास वीरभट्टी में पार्वती प्रेमा जगाती सरस्वती विहार आवासीय विद्यालय है जहां करीब 08सौ बच्चे अध्ययन कर रहे है। यहां नेपाल, श्रीलंका, म्यांमार से भी बच्चे आकर गुरुकुल आधारित सीबीएससी पाठ्यक्रम की शिक्षा ले रहे है। विद्यालय के प्रबंधक श्याम अग्रवाल बताते है कि ऐसा ही एक विद्यालय पिथौरागढ़ जिले में मुवानी में शेर सिंह कार्की सरस्वती विहार के नाम से स्थापित किया गया है। जिसके भवन का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवकसंघ के सरसंघ चालक डा मोहन भगवान ने किया है,इसमें अब छात्रावास बनाए जाने का काम चल रहा है ताकि सुदूर सीमांत जिले के विद्यार्थियों को भविष्य निखारा जा सके। वे बताते है कि भविष्य में हमारी उत्तराखंड में एक भारतीय संस्कृति पर आधारित एक आधुनिक विश्व विद्यालय स्थापित करने की योजना भी गतिमान है।
जन सहयोग से चलते है शिशु मंदिर
देवभूमि उत्तराखंड में ज्यादातर विद्यालय स्थानीय नागरिकों, पुराने विद्यार्थियों के सहयोग से चल रहे है।किसी ने कंप्यूटर दे दिया,किसी ने कमरा बनवा दिया,किसी ने शौचालय बनवा दिया,किसी ने गरीब बच्चों के लिए पुस्तके,स्कूल ड्रेस बनवा दी। किसी उद्योगपति ने सीएसआरफंड से स्मार्ट क्लास बनवा दी तो किसी फाउंडेशन ने स्कूल बस का इंतजाम करवा दिया। सैकड़ों पब्लिक स्कूल खुल जाने और महंगी फीस के बावजूद सरस्वती शिशु मंदिरों की एक मर्यादा है जिसे विद्याभारती की अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान संचालित करती है। भारतीय शिक्षा समिति उत्तराखंड में इन शिक्षा केंद्रों पर विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास पर ध्यान देती है।
विद्या भारती के प्रदेश निरीक्षक डॉ विजय पाल सिंह कहते है कि हमारे शिशु मंदिर अपने विद्यार्थियों को भारतीयता से जोड़ते है हमारे यहां राष्ट्र सर्वोपरि शिक्षा दी जाती है। देवभूमि उत्तराखंड सनातन की जननी है हम ये संस्कार अपने गुरुजनों के माध्यम से विद्यार्थियों में देते आए है।
हाईस्कूल-इंटर में टॉपर्स में विद्यार्थी
हर साल हाई स्कूल और इंटर मीडियट की परीक्षाओं में चाहे वो उत्तराखंड बोर्ड हो या फिर सीबीएससी, राज्य के टॉप टेन विद्यार्थियों में सरस्वती शिशु मंदिर के विद्यार्थियों का नाम पिछले कई दशकों से रहता आया है।








