क्रांति मिशन ब्यूरो
गैरसैण। विधानसभा में आज उत्तराखंड में मदरसा बोर्ड समाप्त करने का विधेयक पास हो गया। विपक्ष के भारी शोरगुल के बीच सख्त धर्मांतरण विधेयक को भी मंजूरी दे दी गई। कानून व्यवस्था को लेकर सदन में शोर मचा रहे विपक्ष के विधायकों के बीच धर्मांतरण विधेयक को पारित करने के प्रस्ताव को धर्मस्य मंत्री सतपाल महाराज ने सदन के सम्मुख रखा जिसपर सत्ता पक्ष के विधायकों ने अपने बहुमत के आधार पर पारित करवा लिया।
उत्तराखंड में अगले साल मदरसा बोर्ड खत्म करने के विधेयक को मंजूरी दिए जाने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री की ओर से संसदीय कार्य मंत्री सुबोध उनियाल ने रखा ,जिसे सत्तापक्ष के विधायकों ने “हां” कह कर पारित कर दिया। विपक्ष के विधायक इस दौरान शोर शराबा करते रहे। सरकार की तरफ से अनुपूरक बजट और अन्य विधेयक भी सदन में चर्चा के लिए रखते हुए एक के बाद एक पास करवा लिए ।
धर्मांतरण संशोधन विधेयक के खास बिंदु
1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम उत्तराखण्ड धर्म स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2025 है।
(2) यह तुरन्त प्रवृत्त होगा।
2. प्रलोभन की परिभाषा में प्रस्तावित संयोजन।
प्रलोभन” का अर्थ है और इसमें किसी प्रलोभन की पेशकश भी निम्न रूप से शामिल है, –
(1) कोई उपहार, परितोषण, आसान धन या भौतिक लाभ, चाहे नकद या वस्तु के रूप में;
(ii) रोजगार, किसी धार्मिक संस्था द्वारा संचालित स्कूल या कॉलेज में निःशुल्क शिक्षा; या
(iii) विवाह करने का वचन देना; या
(iv) बेहतर जीवनशैली, दैवीय अप्रसन्नता या अन्यथा; या
(v) किसी धर्म की प्रथाओं, अनुष्ठानों और समारोहों या उसके किसी अभिन्न अंग को किसी अन्य धर्म के संबंध में हानिकारक तरीके से चित्रित करना; या
(vi) एक धर्म को दूसरे धर्म के विरुद्ध महिमामंडित करना।
3. प्रस्तावित संशोधन पूर्व में उल्लिखित प्राविधान का प्रतिस्थापन करते हुएः
इस अधिनियम में प्रयुक्त किन्तु अपरिभाषित तथा भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023, भारतीय न्याय संहिता, 2023 या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (2000 का केन्द्रीय अधिनियम 21) में परिभाषित शब्दों तथा अभिव्यक्तियों के वही अर्थ होंगे, जो उस अधिनियम में क्रमशः उन्हें दिए गए हैं।
प्रस्तावित संशोधन:
डिजिटल ढंग :
“डिजिटल ढंग” से अभिप्राय है तथा इसमें शामिल है,
(1) सोशल मीडिया नेटवर्किंग साइट, जो व्यैक्तिकों को, –
(i) परिबद्ध प्रणाली के भीतर सार्वजनिक या अर्ध सार्वजनिक प्रोफाइल का निर्माण करने की अनुमति देती है;
(ii) अन्य उपयोगकर्ताओं, जिनके साथ वे कनैक्शन साझा करते हैं, की सूची स्पष्ट करने की अनुमति देती है; तथा
(iii) प्रणाली के भीतर उनके तथा दूसरों द्वारा बनाये गए कनैक्शनों की सूची देखने और अनुप्रस्थ करने की अनुमति देती है;
(2) सोशल मीडिया ऐप्लिकेशन, जिसका उद्देश्य उन लोगों के ऑनलाइन समुदायों का निर्माण करना, जो अपनी रूचियों और गतिविधियों को साझा करते हैं, या जो दूसरों की रूचियों और गतिविधियों की छान-बिन में रूचि रखते हैं और उपयोगकर्ताओं को प्रभावित करने के लिए कई प्रकार के तरीके प्रदान करती है, जैसे ई-मेल और इंस्टेंट मैसेजिंगः
5. प्रस्तावित संशोधन :
(ड) छद्म पहचान (Fraudulent Impersonation):
जानबूझकर एवं धोखे की मंशा से किसी अन्य व्यक्ति के धार्मिक वेशभूषा, सामाजिक पद अथवा प्रतिष्ठा का भेष धारण करना व जाति, धर्म, मूल, लिंग जन्म स्थान या निवास स्थान का प्रतिरूपण करना अथवा किसी धार्मिक संस्था या सामाजिक संगठन का झूठा रूप धारण करना, विशेषतः यदि इसका उद्देश्य-जनता को भ्रमित करना, धोखाधड़ी करना, अनुचित लाभ अर्जित करना, सार्वजनिक भावनाओं को आहत करना हो।
6. प्रस्तावित संशोधन :
(ढ) “सार्वजनिक भावना” से तात्पर्य किसी समुदाय या धार्मिक समूह की सांस्कृतिक एवं धार्मिक भावनाएँ, जिनके जानबूझकर आहत करने पर समाज में अशांति उत्पन्न होने की संभावना हो।
7. प्रस्तावित संशोधन :
(ण) “पीड़ित” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जिसे इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध के परिणाम स्वरूप कोई हानि या क्षति कारित हुई है और इसके अन्तर्गत ऐसे पीड़ित का संरक्षक व विधिक वारिस भी है।
8. प्रस्तावित संयोजन :
(3) डिजिटल ढंग सहित किन्हीं साधनों के माध्यम से ऐसे धर्म परिवर्तन के लिए नहीं उकसाएगा या षड्यन्त्र नहीं करेगा।
(4) विवाह के आशय से अपना धर्म नहीं छिपाएगा।
(5) कोई भी व्यक्ति-छद्म पहचान का प्रयोग नहीं करेगा, धार्मिक, सामाजिक या अन्य पहचान का दुरुपयोग नहीं करेगा, सार्वजनिक भावनाओं को आहत नहीं करेगा, अनुचित लाभ प्राप्त करने हेतु धोखाधड़ी नहीं करेगा।
9. धारा 4- प्रस्तावित संशोधन – पूर्व मे उल्लेखित प्रावधान का प्रतिस्थापन करते हुएः
अधिनियम के उपबन्धों के उल्लंघन से सम्बन्धित कोई सूचना किसी भी व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है और ऐसी सूचना देने के रीति वही होगी जैसी नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (अधिनियम संख्या 46 सन् 2023) के अध्याय 13 में की गई है।
10. प्रस्तावित संशोधन पूर्व में उल्लिखित प्राविधान का प्रतिस्थापन करते हुएः
(1) जो कोई धारा 3 के उपबंधों का उल्लंघन करेगा/करेगी, वह किसी सिविल दायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसी अवधि के लिए कारावास से दण्डित किया जायेगा/की जायेगी, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो दस वर्ष तक हो सकेगी और वह ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा / होगी जो पच्चास हजार रूपये से कम नही होगाः
(2) जो कोई किसी अवयस्क, महिला या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के व्यक्ति के सम्बन्ध में या दिव्यांग या मानसिक रूप से दुर्बल पुरुष या महिला के संबंध में धारा 3 के उपबंधों का उल्लंघन करेगा करेगी वह ऐसी अवधि के लिए कारावास से दण्डित किया जायेगा/की जायेगी, जो पाँच वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु चौदह वर्ष तक हो सकेगी और वह ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा/होगी जो एक लाख रूपये से कम नहीं होगा।
परन्तु यह और कि जो कोई सामूहिक धर्म परिवर्तन के सम्बन्ध में धारा 3 के उपबंधों का उल्लंघन करेगा/करेगी वह ऐसी अवधि के लिए कारावास से दण्डित किया जायेगा/की जायेगी जो सात वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु चौदह वर्ष तक हो सकेगी और वह ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा/होगी जो एक लाख रूपये से कम नहीं होगाः
(3) जो कोई विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन के सम्बन्ध में किन्हीं विदेशी अथवा अवधिक संस्थाओं से धन प्राप्त करेगा वह ऐसी अवधि से कठोर कारावास से दंडित किया जाएगा जो सात वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो चौदह वर्ष तक हो सकेगी और वह ऐसे जुर्माने का भी दायी होगी, जो दस लाख रुपये से कम नहीं होगा।
(4) जो कोई धर्म संपरिवर्तन करने के आशय से किसी व्यक्ति को उसके जीवन या संपत्ति के लिए भय में डालता है, हमला करता है या बल का प्रयोग करता है या विवाह या विवाह करने का वचन देता है या उसके लिए उत्प्रेरित करता है या षडयंत्र करता है या उन्हें प्रलोभन देकर किसी नाबालिक महिला या व्यक्ति की तस्करी करता है या अन्यथा उन्हें विक्रीत करता है या इस निमित्त दुष्प्रेरण, प्रयास अथवा षडयंत्र करता है वह ऐसी अवधि के कठोर कारावास से, जिसकी अवधि बीस वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है, जिसका तात्पर्य उस व्यक्ति के शेष प्राकृत जीवनकाल के लिए कारावास से होगा, दंडित किया जाएगा और जुर्माने के लिए भी दायी होगा:
परन्तु ऐसा जुर्माना पीड़ित के चिकित्सीय खर्चों को पूरा करने और पुनर्वास के लिए न्यायोचित और युक्तियुक्त होगाः
(5) न्यायालय उक्त धर्म परिवर्तन के पीड़ित को अभियुक्त द्वारा संदेय समूचित प्रतिकर भी स्वीकृत करेगा, जो अधिकतम पांच लाख रूपये तक हो सकता है जो जुर्माना के अतिरिक्त होगा।
( 6 ) जो कोई भी उसके द्वारा माने जाने वाले धर्म से भिन्न किसी धर्म वाले व्यक्ति से विवाह करने का आशय रखते हुए धारा 3 (4) के उपबंधों का उल्लंघन करेगा/करेगी है तथा ऐसी रीति में अपने धर्म को छुपाता है कि अन्य व्यक्ति, जिससे वह विवाह करने का आशय रखता है, विश्वास करता है कि वास्तव में उसका धर्म उसके द्वारा माने जाने वाला ही धर्म है, तो कारावास की ऐसी अवधि, जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी. जो दस वर्ष के लिए बढ़ाई जा सकती है, से दण्डनीय होगा और जुर्माने, जो तीन लाख रूपए से कम नहीं होगा, से भी दण्डनीय होगा।
(7) जो कोई भी उपधारा 3(5) का उल्लंघन करता है वह ऐसी अवधि के कारावास जो तीन वर्ष से कम नहीं होगी किन्तु जो दस वर्ष तक हो सकेगी और वह ऐसे जुर्माने के लिए भी दायी होगा। होगी जो पच्चास हजार रूपये से कम नहीं होगाः
(8) जो कोई इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का पूर्व में सिद्ध दोष ठहराये जाने पर इस अधिनियम के अधीन दण्डनीय किसी अपराध का पुनः सिद्धदोष ठहराया जायेगा/जायेगी वह ऐसे प्रत्येक पश्चातवर्ती अपराध के लिए दण्ड का दायी होगा/होगी जो इस अधिनियम के अधीन तद्भिमित्त प्रदान किये गये दण्ड के दो गुना से अधिक नहीं होगा।
11. प्रस्तावित संयोजनः
(1) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (अधिनियम संख्या 46 सन् 2023) से अन्तर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी इस अधिनियम के अधीन समस्त अपराध, संज्ञेय और गैर जमानतीय होंगे तथा सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय होंगे।
(2) इस अधिनियम के अधीन दंडनीय किसी अपराध के अभियुक्त व्यक्ति, यदि अभिरक्षा में हो, को जमानत पर तब तक नहीं छोड़ा जायेगा, जब तक कि-
(क) इस अधिनियम को, ऐसे छोड़े जाने के लिए जमानत के आवेदन का विरोध करने हेतु अवसर न प्रदान कर दिया जाय, और
(ख) जहाँ लोक अभियोजक जमानत के आवेदन का विरोध करता है वहीं सत्र न्यायालय का यह समाधान हो जाने पर कि यह विश्वास करने के युक्तियुक्त आधार है कि वह ऐसे अपराध का दोषी नहीं है और यह कि जमानत पर रहने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध किया जाना संभाव्य नहीं है।
12. संपत्ति की कुर्कीः
(1) यदि जिला मजिस्ट्रेट को यह विश्वास करने का कारण है कि किसी व्यक्ति के कब्जे में स्थित कोई सम्पत्ति, चाहे वह जंगम हो या स्थावर अभियुक्त के द्वारा इस अधिनियम के अधीन विचारणीय किसी अपराध कार्य के परिणामस्वरूप अर्जित की गयी है तो वह ऐसी सम्पत्ति को कुर्क करने का आदेश दे सकता है, चाहे किसी न्यायालय द्वारा ऐसे अपराध का संज्ञान किया गया हो, या नहीं।
(2) प्रत्येक ऐसी कुर्की पर भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के उपबन्ध, यथावश्यक परिवर्तन सहित, लागू होंगे।
(3) संहिता के उपबन्धों के होते हुए भी, जिला मजिस्ट्रेट, उपधारा (1) के अधीन कुर्क की गयी किसी सम्पत्ति का प्रशासक नियुक्त कर सकता है और प्रशासक को ऐसी सम्पत्ति के सर्वोत्तम हित में उसका प्रबन्ध करने की सभी शक्तियाँ होगी।
(4) जिला मजिस्ट्रेट ऐसी सम्पत्ति के उचित और प्रभावी प्रबन्ध के लिए प्रशासक को पुलिस सहायता की व्यवस्था कर सकता है।
13. सम्पत्ति को निर्मुक्त करनाः
(1) जहां कोई संपत्ति धारा 14 क के अधीन कुर्क की जाये, वहाँ उसका दावेदार, ऐसी कुर्की की जानकारी के दिनांक से तीन मास, के भीतर जिला मजिस्ट्रेट को अपने द्वारा उस सम्पत्ति के अर्जन की परिस्थितियों और स्रोतों को दर्शाते हुए अभ्यावेदन कर सकता है।
(2) यदि उपधारा (1) के अधीन, किये गये दावे की वास्तविकता के बारे में जिला मजिस्ट्रेट का यह समाधान हो जाये तो वह कुर्क की गयी सम्पत्ति को तत्काल निर्मुक्त कर देगा और तदुपरान्त ऐसी सम्पत्ति दावेदार को सौंप दी जायेगी।
14. सत्र न्यायालय द्वारा सम्पत्ति के अर्जन के स्वरूप के बारे में जाँचः
(1) जहां धारा 14ख की उपधारा (1) में विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर कोई अभ्यावेदन न दिया जाये या जिला मजिस्ट्रेट धारा 14ख की उपधारा (2) के अधीन सम्पत्ति को निर्मुक्त नहीं करता है वहाँ वह मामले की अपनी रिपोर्ट के साथ इस अधिनियम के अधीन अपराध का विचारण करने के लिए अधिकारिता युक्त न्यायालय को निर्दिष्ट करेगा।
(2) जहां जिला मजिस्ट्रेट ने किसी सम्पत्ति को धारा 14क की उपधारा (1) के अधीन कुर्क करने से इन्कार किया है या किसी सम्पत्ति को धारा 14ख की उपधारा (2) के अधीन निर्मुक्त करने का आदेश दिया है वहाँ राज्य सरकार या कोई व्यक्ति जो इस प्रकार इन्कार करने या निर्मुक्त करने से व्यथित हो, यह जाँच करने के लिये कि क्या सम्पत्ति इस अधिनियम के अधीन विचारणीय किसी अपराध कार्य के द्वारा या उसके परिणामस्वरूप अर्जित की गयी थी, उपधारा (1) में निर्दिष्ट न्यायालय को आवेदन-पत्र दे सकता है। ऐसा न्यायालय, यदि वह न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक या समीचीन समझे, ऐसी सम्पत्ति को कुर्क करने का आदेश दे सकता है।
(3) (क) उपधारा (1) के अधीन निर्देश या उपधारा (2) के अधीन आवेदन-पत्र की प्राप्ति पर न्यायालय जाँच के लिये कोई दिनांक नियत करेगा और उसकी नोटिस उपधारा (2) के अधीन आवेदन-पत्र देने वाले व्यक्ति या यथास्थिति, धारा 14ख के अधीन अभ्यावेदन देने वाले व्यक्ति और राज्य सरकार और किसी अन्य व्यक्ति को भी जिसका हित मामले में अन्तर्ग्रस्त प्रतीत हो, देगा।
(ख) इस प्रकार नियत दिनांक को या किसी पश्चात्वर्ती दिनांक को जब तक के लिये जाँच अस्थगित की जाये, न्यायालय पक्षकारों की सुनवाई करेगा, उनके द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य ग्रहण करेगा, ऐसे और साक्ष्य लेगा जिसे वह आवश्यक समझे, यह विनिश्चित करेगा कि क्या सम्पत्ति किसी अभियुक्त द्वारा इस अधिनियम के अधीन विचारणीय किसी अपराध कार्य के परिणामस्वरूप अर्जित की गयी थी और धारा 14घ के अधीन ऐसा आदेश देगा जैसा मामले की परिस्थितियों में न्यायसंगत और आवश्यक हो।
(4) उपधारा (3) के अधीन जाँच के प्रयोजनों के लिए सत्र न्यायालय को निम्नलिखित विषयों के सम्बन्ध में ऐसी शक्तियाँ होंगी जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (अधिनियम संख्या 5 सन् 1908) के अधीन किसी वाद पर विचारण करते समय सिविल न्यायालय की होती हैं, अर्थात् –
क) किसी व्यक्ति को समन कराना और उसे हाजिर कराना और शपथ पर उसका परीक्षण करना;
(ख) दस्तावेजों का पता लगाने और उन्हें प्रस्तुत करने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथ-पत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से कोई सार्वजनिक अभिलेख या उसकी प्रति अभियाचित करना;
(ङ) साक्षियों या दस्तावेजों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी करना;
(च) व्यतिक्रम के लिए निर्देश को खारिज करना या उसे एकपक्षीय विनिश्चित करना;
(छ) व्यतिक्रम के लिए खारिज करने के आदेश या एकपक्षीय विनिश्चय को अपास्त करना।
(5) भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 में किसी प्रतिकूल बात के होते हुए भी, इस धारा के अधीन किसी कार्यवाही में यह साबित करने का भार कि प्रश्नगत सम्पत्ति या उसका कोई भाग किसी अभियुक्त द्वारा इस अधिनियम के अधीन विचारणीय किसी अपराध कार्य के परिणामस्वरूप अर्जित नहीं किया गया था, सम्पत्ति पर दावा करने वाले व्यक्ति पर होगा।
15. जाँच के पश्चात् आदेश :
यदि ऐसी जाँच पर न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि सम्पत्ति किसी अभियुक्त द्वारा इस अधिनियम के अधीन विचारणीय किसी अपराध कार्य के परिणामस्वरूप अर्जित नहीं की गई थी तो वह उस सम्पत्ति को ऐसे व्यक्ति के पक्ष में निर्मुक्त करने का आदेश देगा जिसके कब्जे से वह कुर्क की गयी थी। किसी अन्य मामले में न्यायालय सम्पत्ति को कुर्क करके, अधिहरण करके या सम्पत्ति पर कब्जा पाने के लिए हकदार व्यक्ति को देकर, या अन्य प्रकार से उसका निस्तारण का आदेश दे सकता है, जैसा वह उचित समझे।
16. पीड़ित के अधिकारः
(1) पीड़ित से निष्पक्षता, सम्मान और गरिमा के साथ तथा किसी ऐसी विशेष आवश्यकता के साथ, जो पीड़ित की आयु या लिंग या शैक्षणिक अलाभ या गरीबी के कारण उत्पन्न होती है, व्यवहार किया जाएगा।
(2) भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में किसी बात के होते हुए भी, इस अधिनियम के अधीन किसी मामले का विचारण करने वाला न्यायालय पीड़ित, उसके आश्रित या सूचनाकर्ता को निम्नलिखित प्रदान करेगा, –
(क) न्याय प्राप्ति सुनिश्चित करने के लिए पूर्ण संरक्षण;
(ख) अन्वेषण, जांच और विचारण के दौरान यात्रा तथा भरण-पोषण व्ययः और
(ग) अन्वेषण, जांच और विचारण के दौरान सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास;
(घ) पुनः अवस्थान।
(3) राज्य, न्यायालय को किसी पीड़ित या उसके आश्रित या सूचनाकर्ता को प्रदान किए गए संरक्षण के बारे में सूचित करेगा और ऐसा न्यायालय प्रस्थापित किए गए संरक्षण का आवधिक रूप में पुनर्विलोकन करेगा तथा समुचित आदेश पारित करेगा।
(4) उपधारा (2) के उपबंधों की व्यापकता पर
प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, विचारण न्यायालय उसके समक्ष किन्हीं कार्यवाहियों में किसी पीड़ित या उसके आश्रित, सूचनाकर्ता या ऐसे पीड़ित, सूचनाकर्ता के संबंध में लोक अभियोजक द्वारा किए गए आवेदन पर या स्वेच्छा से ऐसे उपाय, जिनमें निम्नलिखित सम्मिलित हैं, कर सकेगा, –
(क) जनता की पहुंच योग्य मामले के उसके आदेशों या निर्णयों में या किन्हीं अभिलेखों में पीड़ित या उसके आश्रित, सूचनाकर्ता के नाम और पतों को छुपाना;
(ख) पीड़ित या उसके आश्रित, सूचनाकर्ता की पहचान और पतों का अप्रकटन करने के लिए निदेश जारी करना;
(ग) पीड़ित, सूचनाकर्ता के उत्पीड़न से संबंधित किसी शिकायत के संबंध में तुरंत कार्रवाई करना और उसी दिन, यदि आवश्यक हो, संरक्षण के लिए समुचित आदेश पारित करना :
(5) राज्य का, न्याय प्राप्त करने में पीड़ित के निम्नलिखित अधिकारों और हकों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक समुचित स्कीम विनिर्दिष्ट करने का कर्तव्य होगा,
जिससे, –
(क) अपराध से पीडितों या उनके आश्रितों को नकद या वस्तु में तुरंत राहत प्रदान की जा सके;
(ख) अपराध से पीडितों या उनके आश्रितों को आवश्यक संरक्षण प्रदान किया जा सके;
(ग) पीड़ितों को खाद्य या जल या कपड़े या आश्रय या चिकित्सीय सहायता या परिवहन सुविधा या प्रति दिन भत्तों की व्यवस्था की जा सके;
(घ) शिकायत करने और प्रथम सूचना रिपोर्ट रजिस्टर करने के समय अपराध से पीड़ितों के अधिकारों के बारे में जानकारी प्रदान की जा सके;
(ङ) राहत रकम के संबंध में अपराध से पीड़ितों या उनके आश्रितों को जानकारी प्रदान की जा सके;
17. अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन सुनिश्चित करने का सरकार का कर्तव्यः
(1) राज्य सरकार, इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये ऐसे उपाय करेगी, जो आवश्यक हों।
(2) विशिष्टतया और पूर्वगामी उपबंधों की व्यापकता पर प्रतिकूल प्रभाव डाले बिना, ऐसे उपायों के अंतर्गत निम्नलिखित हो सकेगा,
(i) ऐसे व्यक्तियों को, जिन पर अपराध हुआ है, न्याय प्राप्त करने में समर्थ बनाने के लिए पर्याप्त सुविधाओं की, जिनके अंतर्गत विधिक सहायता भी है, व्यवस्था ;
(ii) अपराध से पीड़ित व्यक्तियों के आर्थिक और सामाजिक पुनरुद्धार की व्यवस्था ;
(iii) इस अधिनियम के उपबन्धों के बेहतर क्रियान्वयन करने के लिए उपायों को सुझाव देने की दृष्टि से इस अधिनियम के उपबन्धों के कार्यकरण का समय-समय पर सर्वेक्षण करने की व्यवस्था ।
अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक के खास बिंदु:
उत्तराखंड सरकार ने उत्तराखंड अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक गंभीर विचार मंथन किया जा रहा है । इस विधेयक का उद्देश्य उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (USAME) की स्थापना करना है। यह प्राधिकरण अल्पसंख्यक समुदायों द्वारा स्थापित और प्रशासित शैक्षणिक संस्थानों को मान्यता देने, शैक्षिक उत्कृष्टता को बढ़ावा देने और उनसे संबंधित सभी मामलों का प्रबंधन करने के लिए जिम्मेदार होगा।
मुख्य प्रावधान:
प्राधिकरण का गठन: विधेयक के तहत, एक उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण (USAME) का गठन किया जाएगा। इसमें एक अध्यक्ष और ग्यारह सदस्य होंगे, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा नामित किया जाएगा। अध्यक्ष अल्पसंख्यक समुदाय का एक शिक्षाविद् होगा, जिसे 15 वर्ष या उससे अधिक का शिक्षण अनुभव हो।
मदरसों की मान्यता: इस अधिनियम के प्रारंभ होने के बाद, पूर्व में उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड द्वारा मान्यता प्राप्त मदरसों को शैक्षणिक सत्र 2026-27 से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने के लिए प्राधिकरण से पुनः मान्यता प्राप्त करना आवश्यक होगा। 1 जुलाई, 2026 से, उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016 और उत्तराखंड अशासकीय अरबी एवं फारसी मदरसा मान्यता विनियमावली, 2019 निरस्त माने जाएंगे।
मान्यता के लिए शर्तें: अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त करने के लिए, संस्थानों को कुछ अनिवार्य शर्तें पूरी करनी होंगी। इनमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि संस्थान किसी अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा स्थापित और संचालित हो, परिषद से संबद्ध हो, और इसका प्रबंधन एक पंजीकृत निकाय (सोसायटी, न्यास, या कंपनी) द्वारा किया जा रहा हो। इसके अतिरिक्त, गैर-अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों का नामांकन 15% से अधिक नहीं होना चाहिए।
पाठ्यक्रम और परीक्षाएं: प्राधिकरण अल्पसंख्यक समुदाय के धर्मों और भाषाओं से संबंधित विषयों के लिए पाठ्यक्रम विकसित करेगा और अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को अतिरिक्त विषयों से संबंधित परीक्षाएं आयोजित करने, छात्रों का मूल्यांकन करने और प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए मार्गदर्शन देगा।
यह विधेयक राज्य में अल्पसंख्यक शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
उत्तराखंड में पहली बार इस तरह की व्यवस्था बनाई गई है जिसमें सभी अल्पसंख्यक समुदायों के संविधानिक अधिकारों की रक्षा करते हुए सभी अल्पसंख्यक शिक्षा संस्थानों को मान्यता प्रदान करने का प्रावधान किया गया है।
सिख , ईसाई, बौद्ध, जैन, मुस्लिम और पारसी समुदाय सम्मिलित हैं अल्पसंख्यक समुदाय में ।
उल्लेखनीय है कि वर्तमान में सिर्फ़ मुस्लिम समुदाय के धार्मिक शिक्षा संस्थान को मान्यता देने की ही व्यवस्था थी ।अल्पसंख्यक समुदाय के धार्मिक शिक्षा व्यवस्था के साथ साथ मूलभूत शिक्षा बच्चों को देने के लिए उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा परिषद के माध्यम से अल्पसंख्यक बच्चों को मुख्य धारा से जोड़ने की क़वायद की गई है।
सीएम पुष्कर सिंह धामी का बयान
वैसे तो विधानसभा में कई विधेयकों को मंजूरी मिली है धर्मांतरण कानूनों को हमारी सरकार ने सख्त किया है। हमारे राज्य में प्रलोभन देकर, बहला फुसला कर, लव जिहाद के तहत धर्मांतरण के मामलों में रोक लगे इस लिए ये कानून बनाया गया है। दूसरा महत्वपूर्ण विधेयक अल्पसंख्यक शिक्षा विधेयक है जोकि अल्पसंख्यक श्रेणी में आने वाले हर समुदाय को शिक्षा का बराबर का अधिकार देगा। अभी तक केवल मुस्लिम सम्प्रदायिक लिए मदरसा बोर्ड ही था जिसे 2026 को समाप्त कर दिया जाएगा। उत्तराखंड में एक समान शिक्षा के लिए अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण बनाया जा रहा है।