बढ़ रहा तापमान खतरे की घंटी

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stop global warming
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देहरादून। 23 मार्च हर वर्ष ‘विश्व मौसम विज्ञान दिवस’ के तौर पर मनाया जाता है। डब्ल्यूएमओ ने  ‘स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट’ नाम से वार्षिक रिपोर्ट जारी की है। इसके अनुसार, पूर्व औद्योगिक काल (1750-1850) की तुलना में धरती का तापमान 1.1 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। इस वजह से आर्कटिक क्षेत्र में तेजी से बर्फ का स्तर गिर रहा है।

समुद्री जीवों पर खतरा

2016 में तापमान में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी दर्ज होने का असर यह हुआ कि समुद्र का जलस्तर पहले की तुलना में और अधिक बढ़ गया। समुद्री सतह का तापमान बढऩे से आर्कटिक क्षेत्र में बर्फ का द्रव्यमान 04 मिलियन स्क्वॉयर किलोमीटर गिरा। ट्रॉपिकल वाटर में समुद्री जीवों का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ।

स्वास्थ्य पर पड़ेगा बुरा असर

जलवायु परिवर्तन से वातावरण में कार्बन डाई-ऑक्साइड 400.0+-0.1 कण प्रति मिलियन बढ़ गया है। आगामी वर्षों में इसका मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ेगा। त्वचा, श्वसन प्रणाली, ब्रेन और एलर्जिक बीमारियों में इजाफा होगा। वैश्विक स्तर पर लोगों को इसका सामना करना पड़ेगा।

हर 10 साल में 0.20 सेल्सियस बढ़ रहा

डब्लूएमओ की ग्लोबल क्लाइमेट चेंज रिपोर्ट के अनुसार, हर 10 वर्ष में तापमान में 0.1 से 0.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ोतरी की संभावना है। डब्लूएमओ के मौसमी आधार वर्ष 1961-1990 की तुलना में 2001 तक 0.4 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ा। 2016 में भी यही ट्रेंड देखने को मिला है। इसके पीछे अलनीनो इफेक्ट को भी अहम कारण माना जा रहा है। अलनीनो इफेक्ट का असर मानव स्वास्थ्य पर भी काफी बुरा होता है।

प्राकृतिक आपदा

हरीकेन मैथ्यू इफेक्ट की वजह से हैती और अमरीका सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ। बाढ़, बर्फबारी और तूफान की वजह से 2016 में इन देशों को बड़े पैमाने पर जन और धन दोनों का नुकसान उठाना पड़ा। दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका सहित दक्षिण एशियाई देशों में भी बाढ़ और भारी बारिश को इसी का नतीजा माना जा रहा है।

आगे आएं विश्व के देश

डब्ल्यूएमओ के अध्यक्ष डेविड ग्रेम्स और महासचिव पेटीरी तालास का कहना है कि क्लाइमेंट चेंज के लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार कार्बन डाई ऑक्साइड है। वातावरण में इसकी मात्रा बढऩे की वजह से ग्लोबल वार्मिंग का खतरा बढ़ता जा रहा है। इस चुनौती से निबटने के लिए विकसित व विकासशील देशों को पेरिस समझौते पर तेजी से अमल करते हुए जलवायु संरक्षण पर जोर देना होगा। नहीं तो मौसम में आ रहे बदलाव को रोकना संभव नहीं होगा और मानव जीवन पर खतरा बढ़ता जाएगा।

1950 में हुआ विश्व मौसम दिवस का गठन

1950 में इसकी स्थापना हुई। इससे पहले यह अंतरराष्ट्रीय मौसम संस्थान के नाम से जाना जाता था, जो 1873 में स्थापित हुआ था। इसका हेडक्वार्टर स्विटजरलैण्ड की राजधानी जेनेवा में है। यह संयुक्त राष्ट्र की संस्था है। 191 देश इसके सदस्य हैं।

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