उत्तराखंड जल प्रलय : दूनघाटी की नदियों ने अतिक्रमणकारियों को चेताया, हमारी भूमि खाली करो

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क्रांति मिशन ब्यूरो 

देहरादून। शहर के बीचों बीच बहने वाली दून घाटी की बरसाती नदियों ने शासन प्रशासन को चेतावनी दी है कि हमे अपनी भूमि खाली करवाने के लिए किसी पटवारी की जरूरत नहीं है।उल्लेखनीय है कि इस मानसून में जिस तरह से दून घाटी में अपनी भूमि पर अवैध रूप से काबिज लोगों के घरों के दरवाजों पर दस्तक दी है उससे सभी खौफ में है।

उल्लेखनीय है कि दून घाटी में पिछले कई दिनों से दिन की भारी बारिश ने बिंदाल, रिस्पना,तमसा सहित सभी नदियों में आई बाढ़ ने उन दून वासियों के भीतर खौफ की सिहरन पैदा कर दी है जोकि इन नदियों किनारे अवैध रूप से बसे हुए है और इन्हें अतिक्रमणकारी माना जाता है।
दून घाटी की इन नदियों के किनारे रास्तों में बड़ी संख्या में अतिक्रमण किया हुआ है और नदियों में आए पानी ने लोगो के घरों के दरवाजे तक दस्तक देकर कर उन्हें स्वयं नोटिस दिया है कि ये उनका रास्ता है। जिस दिन उसका रौद्र रूप और व्यापक हुआ वो सब कुछ समेट कर ले जाएगी।
दरअसल ये दून घाटी में मानसून की बारिश वैसे भी ज्यादा होती है यहां की बरसाती नदियां नजदीक के शिवालिक पहाड़ों के नालों गधेरों से जुड़ी हुई है जिसका रास्ता यहां से गुजरता हुआ गंगा और यमुना में जाकर मिलता है।
दून घाटी की ये बरसाती नदियां पिछले कुछ सालों से अवैध कब्जों की चपेट में है। इन अवैध कब्जों को लेकर नैनीताल हाई कोर्ट और राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने राज्य सरकार को बार बार चेताया है कि इन्हें हटाया जाए,किंतु राजनीतिक इच्छा शक्ति इस कार्य में बाधक बनती रही है। दूनघाटी की रिस्पना और जाखन गंगा की सहायक नदियां है जबकि सुसवा पहले सोंग में फिर ये गंगा में जाकर मिलती है।
बिंदाल और आसन नदियां जमुना में जाकर मिलती है। इनके अलावा और भी छोटे बरसाती नाले है जोकि इन नदियों से मिलते हुए गंगा यमुना समाते है।दोनों नदियां इस वक्त खतरे के निशान से ऊपर बह रही ही।
यही वजह है कि इन सहायक नदियों के प्राकृतिक मार्ग बाधित होने पर हाई कोर्ट और एनजीटी दोनों चिंतित है। नदियों किनारे अवैध रूप से बनी मलिन बस्तियों के कारण इनका जल प्रवाह रुक रहा है और नदियों के बारे में कहा जाता है कि वो 35 साल बाद अपने पुराने मार्ग पर एक न एक दिन जरूरी लौटती है।जिस तरह से इस बार इन नदियों में जल प्रवाह दिखाई दे रहा है वो जल प्रलय के बेहद करीब है।
रिस्पना नदी का ऐसा रौद्र रूप कई सालों बाद दिखा, रिस्पना अपने पुल से छूती हुई बह रही है। दर्जनों की संख्या में झोपड़ियों, जानवर भी बहते दिखाई दिए। कांवली रोड पर बिंदाल पुल के ऊपर से पानी बह रहा था। तमसा नदी ने टपकेश्वर मंदिर तक पहुंच कर जलाभिषेक किया।
मालदेवता की सोंग नदी ,सहस्त्रधारा की बद्री नदी के पानी ने आसपास की आबादी को चेतावनी दी कि वो नदी की तरफ नहीं आएं।
सहस्त्रधारा आई टी पार्क की सड़के इन बरसाती नदियों नालों की वजह से जलमग्न थी।
इसमें कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि रिस्पना, बिंदाल, तमसा, सोंग, जाख़न, आसन ने इस बार राजधानी ने शासन प्रशासन को ये चेतावनी दे दी है जो उनके मार्ग को बाधित करेगा वो हमारा रौद्र रूप देखेगा। लिहाजा उनके मार्ग खाली करवाएं जाए।
इन नदियों के जल प्रवाह ने अवैध रूप से काबिज कई घरों की नींव भी हिला दी है और तीन चार मकान को लील भी लिया है।
बरहाल नदियों के किनारे कब्जा करके बनाई गई अवैध बस्तियों या कहे सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को लेकर राज्य सरकार को कोई बड़ा फैसला लेना पड़ेगा।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने उच्च स्तरीय बैठक करके संवेदनशील स्थानों पर निर्माण पर रोक लगाने के आदेश दिए है। किंतु ये आदेश अभी नव निर्माण को लेकर है
जहां अतिक्रमण है उसको हटाने के लिए शासन और राजनीतिक इच्छा शक्ति की भी जरूरत है। क्योंकि जब जब इन नदियों के किनारे से अतिक्रमण हटाने की बात हुई है सत्ता और विपक्ष दोनों की भूमिका वोट बैंक को बचाने वाली हो जाती है और ये अभियान भी मानसून के बादल जाते ही फुस्स हो जाता है।