उत्तराखंड : पछुवा देहरादून में परिवार रजिस्टरों में गड़बड़ झाले की खबरों से हड़कंप, रजिस्टरों पर लगा पहरा … राज्य बनने के बाद हिन्दू गांव हो गए मुस्लिम बाहुल्य से

0
20

क्रांति मिशन ब्यूरो

देहरादून। देहरादून जिले में परिवार रजिस्टरों एक षड्यंत्र के तहत हेरफेर करके मुस्लिम आबादी का विस्तार किया गया है? ये मामला प्रारंभिक जांच में सामने आ गया है और शासन प्रशासन ने अब इसके पीछे किस किस की भूमिका है इस पर और गहनता से जांच पड़ताल कराई जा रही है।

खबर है कि इस मामले के उजागर होते ही उक्त परिवार रजिस्टरों पर प्रशासन ने पहरा बैठा दिया है। जिन अधिकारियों और जन प्रतिधिनियों की इसमें मिलीभगत है वो बैचेनी में इधर उधर दौड़ लगा रहे हैं कि किसी भी तरह ये मामला दब जाए। सूत्रों के मुताबिक फिलहाल सभी परिवार रजिस्टरों पर उप जिलाधिकारियों का पहरा बिठा दिया गया है।

देहरादून जिले का क्षेत्र जिसे पछुवा दून इलाके में डेमोग्राफी चेंज की समस्या उत्तराखंड सरकार के लिए चिंता का विषय बन चुकी है। यूपी बिहार और अन्य राज्यों से आई मुस्लिम आबादी ने यहां की बेशकीमती सरकारी जमीनों पर अवैध रूप से बसावट कर ली है, सरकार की विशेष रूप से ग्राम सभा की जमीनों पर मुस्लिम आबादी को बसाने में स्थानीय मुस्लिम ग्राम प्रधानों, प्रधान पतियों की संदेहजनक भूमिका सामने आई है साथ ही ग्राम पंचायत अधिकारियों की भूमिका पर भी सवाल उठे है।

बाहर राज्यों से आई मुस्लिम आबादी ने पछुवा दून की नदी, नहरों के किनारे, वन विभाग की जमीनों पर अवैध रूप से कच्चे पक्के मकान खड़े कर लिए है और अब इनके आधार कार्ड,वोटर लिस्ट में नाम दर्ज हो गए है और इनको संरक्षण देने के बदले वोट बैंक की राजनीति के साथ साथ करोड़ों रु के खेल खेले गए है।

राज्य बनने के समय देहरादून जिले पछुवा क्षेत्र के 28 गांव जो कभी हिंदू बाहुल्य हुआ करते थे वो अब मुस्लिम बाहुल्य हो गए है। आबादी की घुसपैठ का ये खेल कांग्रेस सरकार के समय शुरू हुआ जो अब भी जनप्रतिनिधियों के संरक्षण में बराबर चल रहा है। इन ग्रामों में मुस्लिम प्रधानों की हुकूमत चल रही है जो कभी भी मूल रूप से उत्तराखंड के निवासी थे ही नहीं।

यूपी, बिहार, असम, बंगाल, यहां तक की बंग्लादेशी, म्यामार के रोहिग्या मुस्लिम आबादी यहां पछुवा दून में आकर कैसे बसती चली गई?

खबर है कि खुफिया विभाग की एक रिपोर्ट के बाद चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई है।

देहरादून जिले में प्रेम नगर से हिमांचल पोंटा साहिब तक तक जाने वाली शिमला बाई पास, चकराता रोड के आसपास के इलाको में देवभूमि उत्तराखंड का सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक स्वरूप बिगड़ चुका है। मुख्य मार्गो पर फड़ खोको के कब्जे है और उनके पीछे अवैध रूप से आबादी बस रही हैं या बसाई जा रही है और तो और सरकारी जमीनों पर सौ से ज्यादा मस्जिदों मदरसों की ऊंची मीनारें दिखाई देती है।

आखिर ऐसा कैसे हुआ कि पिछले कुछ सालो में ये इलाका एक दम बदल गया और यहां हिंदू अल्पसंख्यक होते चले गया और मुस्लिम आबादी ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया।
पहले कुछ मुस्लिम यहां हिंदू बाहुल्य गांवों में आकर बसे धीरे धीरे वो अपने साथ अपने रिश्तेदारों को लाकर बसाने लगे फिर वो धन बल और वोट बैंक के बलबूते ग्राम प्रधान बनते चले गए और उन्होंने ग्राम सभा की सरकारी जमीनों अपने लोग बसाए ताकि उनका वोटबैंक और मजबूत होता जाए, जैसे किसी लड़की का निकाह अन्य राज्य में हुआ उसका नाम यहां नहीं कटा और फिर उसके शौहर और उसके बच्चों के नाम भी यहीं के परिवार रजिस्टर में चढ़ा दिए गए। हालत ये हो गए कि दर्जनों की संख्या में यहीं मस्जिदें बनी और मदरसे खुलते चले गए यानि सरकारी जमीनों को कब्जाने का षड्यंत्र रचा गया जो आज भी जारी है।

अवैध कब्जे करने का खेल सरकार की सिंचाई, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग की जमीनों पर भी धन बल और वोट बैंक की राजनीति के दमखम पर आज भी चल रहा है और इसमें सत्ता पक्ष विपक्ष के नेताओ का संरक्षण भी मिलता रहा है।
राजनीति संरक्षण के पीछे बड़ी वजह यहां की नदियों में चल रहा वैध अवैध खनन है जहां हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय ने अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है जो कि यहां के राजनीति से जुड़े नेताओ को धन बल की आपूर्ति करते है।
उत्तराखंड सरकार या शासन ग्राम सभाओं की जमीनो की जिस दिन गंभीरता से जांच करवा लेगी तो उसे मालूम चल जाएगा कि उसकी ग्राम सभाओं की जमीन आखिर कहां चली गई? कहां बिक बिका का ठिकाने लगा दी गई? इन 28 गांवों के परिवार रजिस्टरों में कैसे बाहरी लोगों के नाम चढ़ते चले गए ? इस पर सवाल उठने लाजमी है। खबर है कि ये मामला प्रकाश में आते ही यहां अवैध रूप से बसे हुए लोगों में हड़कम है।

ढकरानी में शक्ति नहर किनारे अवैध कब्जे हुए, धामी सरकार ने दो चरणों में ये अतिक्रमण भी ध्वस्त किए और इसमें कई धार्मिक स्थल भी हटाएं। उत्तराखंड जल विद्युत निगम ने अपनी जमीन उन्हे तारबाड़ से सुरक्षित नही की, अब यहां उत्तराखंड सरकार को सोलर प्रोजेक्ट लगाने है तो देहरादून जिला प्रशासन का बुल्डोजर गरजने लगा, यहां सात सौ से ज्यादा मकान ध्वस्त किए लेकिन यहां रहने वाली आबादी उत्तराखंड छोड़ कर नहीं गई वो आसपास ही मुस्लिम नेताओं के संरक्षण में फिर से अवैध कब्जे कर बैठ गई है और इस बार वो पीडब्ल्यूडी,वन विभाग की जमीनों पर बस रही है।
इसी तरह सहसपुर, जीवन गढ़, तिमली, हसनपुर कल्याणपुर, केदाखाला, सरबा आदि ग्रामों की हालत है जहां ग्राम सभाओं की सरकारी जमीन पर बाहरी मुस्लिम आबादी यहां के प्रधानों ने लाकर बसा दी है।

सूत्र बताते है कि यहां कब्जेदारों ने राशन कार्ड,आधार कार्ड और वोटर आईडी सब बनवा लिए है। जिसमें ग्राम प्रधान की मोहर की भूमिका ,संरक्षण देने वाली रही है।

प्रधानों के फर्जी दस्तावेज

ऐसी चर्चा भी है कि ढकरानी और सहसपुर के ग्राम प्रधानों ने कथित रूप से अपने फर्जी दस्तावेजों के जरिए ही अपना कार्यकाल काट लिया और इनके मामले अदालती कारवाई में लटके हुए है। इन्हे किसका संरक्षण मिला ये सवाल भी उठ रहे है?

सीएम पुष्कर सिंह धामी का बयान

परिवार रजिस्टर में मसले पर सीएम पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि सरकार के संज्ञान में ये गंभीर मामला सामने आया है इसकी गहनता से जांच पड़ताल कराई जा रही है, हम यहां किसी भी सूरत में डेमोग्राफी चेंज नहीं होने देंगे। अतिक्रमण को हर हाल में खाली करवाया जाएगा ।